lalita kashyap

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विष्णुपद छंद

विष्णुपद छंद
16/10
अंत गुरु अनिवार्य
शीत ऋतु

नव यौवन ले आती मेघा,नभ को घेर रही ।
झूम-झूम कर रूप बदलती, गिरिवर छेड़ रही।
धवल शिखर है हिम चादर से, शीतल पवन बहे।
मान सरोवर से हिम जल ले,नित्य नदियॉं बहे।

धुम्र कोहरे में नित छुप कर , धरणी नहा रही।
तुषार जल बिंदुओं से नित्य, काया सजा रही।
झूम शीत समीर जलकण से, पायल बॉंध रही ।
गूॅंज शहनाई बज उठी ‌है, पवन लहरा रही।

विपिन-उपवन सब सो रहें हैं,  श्वेत शॉल ओढ़े।
खग -विहंग सब सुस्त पड़े हैं, सुस्त गाय घोड़े।
झरने झरना बंद हुए सब, मंद पड़े दरिया।
 लोग घरों में पड़े ठिठुरते ,  बरसती बदरिया।

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4 Comments

खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति

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Gunjan Kamal

14-Dec-2023 12:10 PM

👌👏

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Rupesh Kumar

13-Dec-2023 10:18 PM

V nice

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